दिवालिया होते मुल्क और चीन की गला दाब वसूली

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 दिवालिया होते मुल्क और चीन की गला दाब वसूली..


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में सबसे ज्यादा कर्ज कौन देता है- विश्व बैंक, एडीबी या आईएमएफ ? इसके जवाब पर हाल के वर्षों में भारत के सबसे बड़े कूटनीतिक मजमे जी-20 की सफलता निर्भर है। सबसे ज्यादा कर्ज कोई बहुपक्षीय एजेंसी नहीं, बल्कि चीन देता है। बीते साल जी-20 की अध्यक्षता के साथ भारत को यह जिम्मेदारी मिली थी कि वह एक ग्लोबल कर्ज राहत पैकेज सहमति बनाए, नहीं तो दुनिया के कई गरीब मुल्क डूब जाएंगे। एक साल बीत गया मगर चीन को राजी कराने में भारत की कूटनीति हांफने लगी है। जुलाई के दूसरे सप्ताह में गांधीनगर में जी-20 के वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंक गवर्नर की बैठक में भी बात नहीं बनी। जी- 20 का शिखर सम्मेलन अब केवल एक माह दूर है।






• 2022 खत्म होने से पहले श्रीलंका, लेबनान सूरीनाम और जाम्बिया दिवालिया हो चुके थे। पाकिस्तान अर्जेंटीना, घाना, ईजिप्ट और एल सल्वाडोर दिवालिया होने के करीब हैं। विश्व बैंक और आईएमएफ के मुताबिक 50 साल में पहली बार एक साथ 53 देश कर्ज की देनदारी में दिवालिया होने के करीब हैं। उनमें ज्यादातर गरीब और मझोली आय वाले देश हैं। इनमें दुनिया की करीब 18% आबादी बसती है। लेकिन दुनिया की जीडीपी में इनका हिस्सा केवल 5 फीसदी है। इन्होंने बीते एक दशक में बड़े पैमाने पर कर्ज जुटाया है, अब बढ़ती ब्याज दरें इन्हें तबाही के करीब ले आई हैं। गरीब और कम आय वाले देशों का लगभग 800 अरब डॉलर का कर्ज तत्काल माफ होना या उसकी वसूली टाली जानी है, नहीं तो इन पर श्रीलंका जैसा कहर टूट पड़ेगा।


कर्ज के बाजार में चीन ने सब उलट-पुलट दिया है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रेटन वुड्स से जो व्यवस्था निकली थी, उसमें विश्व बैंक सस्ती दरों पर सामाजिक विकास और आर्थिक ढांचा ठीक करने के लिए लंबी अवधि के कर्ज देता है। जबकि आईएमएफ संकट में फंसे मुल्कों को मदद देता है। आईएमएफ ने 1994 के बाद से 150 देशों को 700 अरब डॉलर का कर्ज और बेलआउट पैकेज दिए हैं, लेकिन चीन ने बीते दो दशक में 100 देशों को 840 अरब डॉलर के कर्ज से लाद दिया। हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू का अध्ययन बताता है कि 2020 तक चीन की तरफ से बांटा गया कर्ज ग्लोबल जीडीपी का पांच फीसदी हो गया। विशाल मुद्रा भंडार की मदद से चीन ने दुनिया के सॉवरेन कर्ज बाजार पर कब्जा-सा कर लिया है। 



अर्थव्यवस्थाओं को कर्ज देना शुरू किया था। वेनेजुएला व रूस इनमें प्रमुख थे। 2008 से 2021 के बीच रूस ने 58 अरब डॉलर का कर्ज लिया। ब्राजील, इक्वाडोर, अंगोला की सरकारी तेल कंपनियों को भी चीन से कर्ज मिला। बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के जरिए संसाधनहीन देशों में बुनियादी ढांचे का चीन का कर्ज बढ़ा है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका इसका उदाहरण हैं।


कर्ज चीन के कूटनीतिक अभियान का हिस्सा है। एग्जिम बैंक और चाइना डेवलपमेंट बैंक कर्ज अभियान के अगुआ हैं। एड डेटा का अध्ययन बताता है कि चीन का कर्ज प्राइवेट और पेरिस क्लब की शर्तों से नहीं बंधा है। पेरिस क्लब दुनिया में कर्जदाताओं का समूह है, जिन्हें कर्ज की शर्तों में पारदर्शिता बरतनी होती है। चीन इस क्लब से बाहर है। चीन के कर्ज अनुबंध पेचीदा हैं। सारे कर्ज डॉलर में दिए जाते हैं। चूकने वाले के लिए बचने का कोई रास्ता नहीं होता। कर्ज अनुबंध सार्वजनिक नहीं किया जाता। 


चीन के कर्ज का विस्तार अंतरराष्ट्रीय है। अफ्रीकी देशों पर बकाया कर्ज में 12 फीसदी हिस्सा चीन का है। दुनिया के 50 देशों पर चीन का कर्ज उनके जीडीपी का 15 फीसदी हो गया है। इनमें अफ्रीका व मध्य एशिया के देशों की संख्या बड़ी है।


एजेंसियों की गणना से भी बाहर है। विकासशील देशों को चीन का बहुत-सा कर्ज तमाम निवेश परियोजनाओं के भीतर छिपा है। हार्वर्ड रिव्यू का आकलन है 2018 में चीन का यह छिपा कर्ज 200 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। चीन दुनिया के सभी देशों को निर्यात करता है और अपना माल खरीदने के लिए कर्ज देता है। चीन का 90 फीसदी कर्ज महंगा और बाजार के ब्याज मूल्य पर है। अधिकांश कर्ज रिसोर्स बेस्ड लैंडिंग है, यानी कर्ज लेने वाले देशों को अपनी खदानें, बंदरगाह या आर्थिक संसाधन की जमानत देनी होती है। कांगो, अंगोला, जाम्बिया, गिनिया, घाना में चीन ने कर्ज की गला दाब वसूली की है, यानी डिफॉल्ट होने पर संसाधन कब्जा लिए हैं। श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह ताजा नजीर है।


बीते नवंबर में बाली में जी-20 की बैठक में ही साफ हो गया था कि करीब 150 देश कर्ज संकट में हैं। इन्हें राहत देने के लिए चीन का राजी होना जरूरी है। पर चीन किसी रियायत पर सहमत नहीं है। जी-20 में भारत की सफलता के लिए कर्ज माफी की संधि जरूरी है। शेक्सपीयर का सूदखोर शायलॉक याद है? ग्लोबल मंच पर इस वक्त सबसे बड़े शायलॉक से सौदेबाजी


चल रही है।

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